नई दिल्ली: नई दिल्ली TET News को लेकर अभी कुछ दिनो पूर्व में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के कारण देश में शिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लागू की गई शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की अनिवार्यता एक बार फिर सवालों के घेरे में है। उत्तर प्रदेश के हजारों समायोजित शिक्षकों के एक संगठन ने TET की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दिया है, जिससे शिक्षा जगत में एक नई बहस छिड़ गई है।
यह मामला उन हजारों शिक्षकों के भविष्य से जुड़ा है जो सालों से बिना TET पास किए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। याचिका में शिक्षक संगठन ने शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 में किए गए संशोधनों को चुनौती दी है, जिससे उनकी नौकरियों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
TET News: मुख्य विवाद क्या है?
विवाद का केंद्र RTE अधिनियम की धारा 23(2) और उससे जुड़े संशोधन हैं, जो शिक्षकों की नियुक्ति के लिए TET को अनिवार्य बनाते हैं। शिक्षक संगठन का तर्क है कि इस कानून को पूर्वव्यापी प्रभाव (Retrospective Effect) से लागू करना असंवैधानिक है। इसका मतलब है कि जो शिक्षक TET लागू होने से कई साल पहले (जैसे 1999, 2004) नियुक्त हुए थे, उन पर भी यह नियम थोपा जा रहा है, जो अन्यायपूर्ण है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस फैसले से हजारों शिक्षक, जो दशकों से पढ़ा रहे हैं, उनकी आजीविका और सम्मान सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है।
पुनर्विचार याचिका में शिक्षक संगठन की मुख्य दलीलें
- आजीविका का संकट: TET की अनिवार्यता को पुराने शिक्षकों पर लागू करने से हजारों परिवारों की आजीविका सीधे तौर पर संकट में आ गई है।
- पूर्वव्यापी प्रभाव असंवैधानिक: कानून को पिछली तारीख से लागू करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। जब इन शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी, तब TET की कोई शर्त नहीं थी।
- लंबी सेवा और अनुभव: ये शिक्षक 10-15 वर्षों से भी अधिक समय से सेवा में हैं और उनके पास शिक्षण का लंबा अनुभव है। उनकी योग्यता और अनुभव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- वैध नियुक्ति प्रक्रिया: इन सभी शिक्षकों की नियुक्तियां उस समय की वैध नीतियों और सरकारी योजनाओं (जैसे विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण) के तहत हुई थीं। इसलिए उनकी नियुक्ति को अब अवैध ठहराना गलत है।
- NCTE का 2021 का पत्र: याचिका में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के 2021 के एक पत्र का भी हवाला दिया गया है, जिसमें न्यूनतम योग्यताओं को बार-बार संशोधित करने का जिक्र है।
TET News को लेकर सरकार और नियमों का दृष्टिकोण
दूसरी ओर, सरकार और नियामक संस्थाओं का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। TET को इसी उद्देश्य के लिए एक न्यूनतम मानक के रूप में लाया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक योग्य और सक्षम हैं। उनका तर्क है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है और इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
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सुप्रिम कोर्ट में TET पुनर्विचार मामले का भविष्य क्या हो सकता है?
सुप्रिम कोर्ट में TET पुनर्विचार मामला अभी विचाराधीन है। इस केस का फैसला देश के हजारों शिक्षकों का भविष्य तय करेगा। कोर्ट को गुणवत्ता मानकों और सेवारत शिक्षकों के मानवाधिकारों के बीच संतुलन साधना होगा।
- अगर फैसला शिक्षकों के पक्ष में आता है तो: देश के लाखों शिक्षक जो लंबे समय से सेवारत है उन शिक्षकों को TET से छूट मिल सकती है और उनकी नौकरी बच जाएगी।
- अगर फैसला नियम के पक्ष में आता है: तो इन शिक्षकों को अपनी नौकरी बचाने के लिए TET परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ सकती है।
निष्कर्ष
TET News के अंतर्गत कहा गया की यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि अनुभव और नियमों के बीच का टकराव है। एक तरफ हजारों शिक्षकों के दशकों का अनुभव और उनकी आजीविका है, तो दूसरी तरफ शिक्षा की गुणवत्ता के लिए बनाए गए मानक। अब सभी की निगाहें इस बार सुप्रिम कोर्ट में TET पुनर्विचार के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि शिक्षा के इस महत्वपूर्ण अध्याय का अगला पन्ना क्या होगा।