POSH Act Supreme Court judgment 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा को लेकर एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कर दिया कि यौन उत्पीड़न की शिकायत अब अधिकतम 6 महीने के भीतर ही दर्ज हो सकेगी। यह सीमा POSH अधिनियम के तहत 3 महीने की सामान्य अवधि और 3 महीने की विशेष विस्तार अवधि को मिलाकर तय की गई है।
POSH Act Supreme Court judgment 2025 पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने जॉब कर रही महिलाओं के कार्यस्थल (Working Place) पर महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है जो निम्नवत है।
मुख्य बातें:
- अंतिम ‘रेड लाइन’: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत अब घटना के अधिकतम 6 महीने के भीतर ही दर्ज करानी होगी।
- कानूनी आधार: POSH अधिनियम के तहत 3 महीने की सामान्य और 3 महीने की विशेष विस्तार अवधि ही मान्य।
- ऐतिहासिक निर्देश: कोर्ट ने आरोपी कुलपति के सर्विस रिकॉर्ड में इस फैसले को दर्ज करने का अभूतपूर्व आदेश दिया।
- स्पष्ट संदेश: यह फैसला पीड़ितों के लिए समय पर आवाज़ उठाने और संस्थानों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी तय करता है।
नई दिल्ली: कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों के लिए एक सख्त और स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित कर दी है। शुक्रवार को दिए अपने महत्वपूर्ण निर्णय में, सर्वोच्च अदालत ने कहा कि किसी भी सूरत में शिकायत अंतिम घटना की तारीख से छह महीने से ज़्यादा देरी से दर्ज नहीं की जा सकती। यह फैसला न केवल न्याय की प्रक्रिया को समयबद्ध बनाता है, बल्कि ‘चुप्पी की संस्कृति’ को तोड़ने की दिशा में एक शक्तिशाली कदम है।
मामले की पृष्ठभूमि: कलकत्ता से दिल्ली तक
यह निर्णय पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय विधि विज्ञान विश्वविद्यालय (WBNUJS), कोलकाता के एक बहुचर्चित मामले में आया। यहाँ एक महिला प्रोफेसर ने कुलपति के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। मामले का मुख्य बिंदु समय-सीमा थी:
- उत्पीड़न की अंतिम घटना: अप्रैल 2023
- आधिकारिक शिकायत दर्ज: 26 दिसंबर, 2023
स्थानीय शिकायत समिति (LCC) ने इस शिकायत को POSH अधिनियम, 2013 के तहत निर्धारित 3 महीने की समय-सीमा से बाहर होने के कारण खारिज कर दिया। मामला कलकत्ता हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ जस्टिस पंकज मिथल और प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने भी समय-सीमा के उल्लंघन को सही ठहराते हुए शिकायत को खारिज कर दिया।
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workplace sexual harassment 6 month limit:अदालत की सख्त टिप्पणियाँ और नजीर बना निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने workplace sexual harassment 6 month limit मामले में सिर्फ फैसला ही नहीं सुनाया, बल्कि कुछ ऐसी टिप्पणियाँ कीं जो भविष्य के लिए एक मानक स्थापित करती हैं:
- समय-सीमा की अनिवार्यता: पीठ ने साफ़ किया कि 3 महीने की निर्धारित अवधि और विशेष परिस्थितियों में मिलने वाली 3 महीने की छूट को मिलाकर 6 महीने की ‘लक्ष्मण रेखा’ अंतिम है। अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता ने खुद देरी के लिए माफी मांगी थी, जिससे यह साबित हुआ कि वह समय-सीमा से अवगत थीं।
- ‘निरंतर उत्पीड़न’ की दलील खारिज: पीड़िता ने अपनी पद से बर्खास्तगी को उत्पीड़न की निरंतरता बताने की कोशिश की। लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि यह एक अलग प्रशासनिक कार्रवाई थी, जिसे पिछली घटनाओं से नहीं जोड़ा जा सकता।
- एक अभूतपूर्व आदेश: एक दुर्लभ और कड़े कदम में, अदालत ने कहा, “गलती करने वाले को माफ करना उचित है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए।” इसी सिद्धांत पर, बेंच ने निर्देश दिया कि इस फैसले को आरोपी कुलपति के आधिकारिक बायोडेटा (सर्विस रिकॉर्ड) का हिस्सा बनाया जाए, ताकि यह मामला उनके पेशेवर जीवन पर एक स्थायी टिप्पणी के रूप में अंकित रहे।
कर्मचारियों और संस्थानों के लिए संदेश
POSH Act Supreme Court judgment 2025 पर यह फैसला पूरे देश के कॉरपोरेट और शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक स्पष्ट संदेश है। यह पीड़ितों को जागरूक करता है कि न्याय के लिए समय पर आवाज़ उठाना कितना महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह संस्थानों पर एक भरोसेमंद, संवेदनशील और प्रभावी आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की ज़िम्मेदारी डालता है, ताकि कोई भी पीड़ित डर या संकोच के कारण चुप न रह जाए। यह निर्णय कार्यस्थल को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर है।
निष्कर्ष
POSH Act Supreme Court Judgment 2025 महिलाओं की सुरक्षा और कार्यस्थल पर गरिमा सुनिश्चित करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि workplace sexual harassment 6 month limit से आगे की शिकायत स्वीकार नहीं होगी। यह फैसला न्याय की प्रक्रिया को समयबद्ध बनाता है और कार्यस्थलों को सुरक्षित बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।